Redio का अविष्कार कब और किसने किया ?

कुछ सालों पहले की बात की जाए तो टीवी सेट भारत के हर घर में नहीं हुआ करता था।

उस समय एकमात्र मनोरंजन का साधन था रेडिओ। वह एकमात्र ऐसी चीज़ थी जो हर तबके के पास हुआ करती थी।

गांव में तो लोग कान से कान सटाकर रेडियो के इर्द गिर्द बैठ जाए करते थे ताकि वह उससे निकलने वाली आवाज़ सुन सके।

समय के साथ रेडियो बदलता गया। कभी भारी भरकम और बड़ा सा दिखने वाला रेडिओ आज इतना छोटा हो चुका है।

ये आपकी जेब में आ सकता है। तो चलिए आज आपको ले चलते हैं

रेडियो के सफर पर ताकि इसे और करीब से जाना जा सके। बदलते वक्त के साथ रेडिओ ने भी खुद को काफी बदल दिया।

आज के इस डिजिटल जमाने में रेडियो भी डिजिटल हो चला है। यह आपके फ़ोन, गाड़ी, स्मार्ट फ़ोन जैसे डिजिटल उपकरणों में मिल जाता है।

अब इसमें पुराने दिनों की तरह चैनल फ्रिक्वेन्सी सेट करने की झंझट भी नहीं होती। यूं तो अब जमाने में

इंटरनेट जैसी टेक्नोलॉजी भी आ चुकी है, लेकिन फिर भी रेडिओ इनके आगे नहीं झुका।

आज भी कई लोग हैं, जिन्हें रेडियो सुनने की आदत है। बचपन में जब आप गांव जाते होंगे

तो आपको सुबह सुबह गांव के लोग रेडियो के पास बैठे नजर आते होंगे, फिर चाहे वह बच्चे हों या बुजुर्ग।

असल में उनका यह जमावड़ा सुबह की खबरें सुनने के लिए होता था। आज इस तस्वीर में थोड़ा सा बदलाव हुआ है।

आज आपको लोग रेडियो पर खबर कम

और मनोरंजन के शोध ज्यादा सुनते हुए नजर आ जाएंगे। अब करें भी क्या?

इस समय रेडियो चैनल हैं ही। इतने सारे वह भी जानते हैं कि इस जमाने के लोगों को इंटरटेनमेन्ट ज्यादा भाता है।

बदलते वक्त के साथ रेडियो सुनने वाले भी बदल चूके हैं तो रेडियो का बदलना तो बनता ही है।

रेडिओ की शुरुआत एक ब्रिटिश वैज्ञानिक जेम्स क्लर्क मैक्सवेल ने की थी।

वह विविध रेडियो तरंगों पर काम करते थे। इस दौरान किसी का भी ध्यान उनकी ओर नहीं गया।

वह निरंतर काम में लगे रहे और कुछ समय बाद दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह गए।

उनके जाने के बाद उनकी खोज को अधूरा माना जाने लगा था।

किंतु करीब 8 साल के बाद एक और ब्रिटिश वैज्ञानिक ऑलिवर मैक्सवेल ने 1887 में तारों के माध्यम से रेडियो तरंगों पर काम शुरू किया।

हालांकि वह इसमें कामयाब नहीं हो पाए थे।

इसके बाद हर्ट्स नामक एक वैज्ञानिक ने इस काम को आगे बढ़ाया।

उन्होंने चुंबकीय रेडियो तरंगों पर काम शुरू किया और वह काफी हद तक इसमें सफल भी रहे। हर्ष के निधन के बाद उनकी और

रेडियो से जुड़ी सारी खोज को हर्ज़ की याद में एक पुस्तक बनाकर पेश किया गया।

रेडिओ की खोज के लिए उस पुस्तक को भी एक बड़ा कारण माना जाता है। माना जाता है

कि उसको पढ़ने के बाद ही जगदीश चन्द्र बसु समेत दुनिया के सभी वैग्यानिकों ने रेडियो के प्रति दिलचस्पी दिखानी शुरू की थी।

रेडियो पर लिखी उस किताब ने जगदीश चन्द्र बसु पर इतना प्रभाव डाला था

कि उन्होंने रेडियो तरंगों को हकीकत बना डाला। एक वैज्ञानिक प्रदर्शन के दौरान

उन्होंने रेडियो तरंग से दूरी पर रखी एक घंटी बजाकर दिखाई थी।

जगदीश चन्द्र बसु की सफल कोशिश के बाद मार्कोनी नाम के एक वैज्ञानिक ने रेडियो की खोद को अंजाम दिया।

मार्कोनी ने वायरलेस रेडियो सिग्नल के जरिए 2000 किलोमीटर दूर एक संदेश भेज कर दिखाया।

उसके बाद से तो रेडियो की स्थापना शुरू हो गई। रेडिओ के शुरुआती दिनों में उसका इस्तेमाल सेना में हुआ करता था।

थोड़े समय बाद सरकार को लगा की रेडिओ एक कारगर यंत्र है तो उसने भी इसका इस्तेमाल शुरू कर दिया।

एक लंबे समय तक रेडियो सरकारी कामों के लिए इस्तेमाल होता रहा। उस समय रेडियो चैनल जैसी कोई चीज़ नहीं थी।

बाद में बढ़ते चलन के कारण ही इन्हें रेडियो चैनलों में पहुंचा दिया। 1920 में नौसेना के रेडियो विभाग में काम शुरू कर चूके

फ्रैंक कॉनार्ड को दुनिया में पहली बार कानूनी तौर पर रेडियो स्टेशन शुरू करने की अनुमति मिली।

इन्हें लोग रेडियो ब्रॉडकास्टिंग के जनक के रूप में भी जानते हैं। प्रियंक के रेडियो चैनल शुरू करने के बाद

कई सारी प्राइवेट कंपनियों ने अपना रेडियो स्टेशन खोलना शुरू कर दिया।

इनमें सबसे प्रसिद्ध हुआ ब्रिटिश रेडियो चैनल। बीबीसी रेडियो ने

सबसे पहले साल 1924 में अपने कदम भारत में रखें।

पूरे विश्व की तरह भारत भी रेडियो की अहमियत से अपरिचित था,

इसलिए सरकार ने इसमें खास दिलचस्पी दिखाई।

इसके बाद साल 1932 में तत्कालीन सरकार ने रेडियो की जिम्मेदारी अपने हाथों में ले ली और थोड़े समय के बाद

अपना खुद का रेडियो चैनल ऑल इंडिया रेडियो शुरू कर दिया। वक्त के साथ भारत में रेडियो का प्रचलन भी बढ़ता गया।

ऑल इंडिया रेडियो ने अपनी पहुँच बढ़ानी शुरू कर दी।

भारत में दूर दूर तक उसने अपनी सेवाएं पहुंचाई। स्वतंत्रता के बाद ऑल इंडिया रेडियो ने

अपने अलग से दो विभाग बना लिए, जिसके आधार पर दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई और

गुवाहाटी को ऑल इंडिया रेडियो ने अपना मुख्यालय बनाया।

समय दर समय ऑल इंडिया रेडियो प्रसिद्ध होने लगा और गांव और शहर दोनों जगह लोग इसे सुनने लगे।

देश विदेश की खबरों को जानने के लिए इससे अच्छा कोई साधन नहीं था।

कई सालों तक और इंडिया रेडियो ने ऐसे ही राज़ किया, लेकिन फिर बदलते

समय के साथ प्राइवेट रेडियो चैनलों की शुरुआत हो गई।

उनके आने के बाद से सरकारी चैनलों का रंग फीका सा पड़ गया। लेकिन जो भी हो,

सरकारी या प्राइवेट भारत के लोगों ने रेडियो सुनना

कभी नहीं छोड़ा। हाल फिलहाल तो भारत में ही मन की बात से

रेडियो की लोकप्रियता पुनः रफ्तार पकड़ने की कोशिश में दिखी है।

हालांकि कभी इसका वक्त बहुत व्यापक था

जब आमोखास सभी इससे मन की बात कहते और सुनते थे।

रेडिओ सिर्फ यंत्र नहीं है, इससे लोगों के एहसास जुड़े हैं।

कई पीढ़ियों ने तो बचपन से ही इसे बढ़ते हुए देखा है।

आज भले ही इसकी लोकप्रियता पर थोड़ा असर पड़ा है, लेकिन इसका अस्तित्व

अभी तक खत्म नहीं हुआ है। तो दोस्तों ये था मनोरंजन के

साधन रेडियो का इतिहास दोस्तों अगर आपको भी रेडियो सुनने का शौक है

तो अपना अनुभव हमारे साथ कमेंट बॉक्स में जरूर शेयर करे।

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